संसाधन

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


bazar ki lathi or shikshak

अध्यापक की आम छवि क्या है और यह कैसे बनती है? पिछली शताब्दी के अंतिम दशक में हमारे देश में अपनाई गई आर्थिक नीतियों का इस पर क्या असर हुआ है? शिक्षा तंत्र में अध्यापक की क्या हैसियत है? यह लेख बताता है कि बाजार की ताकतों ने अध्यापक की छवि को धूमिल किया है| नब्बे के दशक के बाद शिक्षकों की सेवा शर्तों के साथ तमाम तरह की छूटें ली गई| शिक्षा की गुणवत्ता में कमी का दोष अध्यापक के मत्थे मढ़ा गया और उसकी पहले से कमतर हैसियत को और ज्यादा हाशिए पर धकेल दिया| यह लेख बाजार के मंसूबों और अध्यापकों के सरोकारों की चर्चा करता है|

Ek Sansthaan Ke Tor Per Vidhyalya

आंद्रे बेते का यह लेख स्कूल को एक सामाजिक संस्था के तौर पर मानते हुए यह दर्शाने का प्रयास करता है कि स्कूल की समाज में सिर्फ शिक्षणशास्त्रीय भूमिका ही नहीं है बल्कि बह एक लोकतांत्रिक समाज में राज्य और समाज के बीच मध्यस्थता कायम करने वाली संस्था भी है|

Natak ki kitaab par vichaar yani natak par audhra vichaar

बाल साहित्य समीक्षा में अशोक वाजपेयी के संपादन में निकली पुस्तक ‘उमंग’ की समीक्षा है| यह पुस्तक दिल्ली में बाल रंगमंच पर कम कर रही संस्था ‘उमंग’ के रजत जयन्ती के उपलक्ष्य में हिंदी के ख्यातनाम लेखकों से नाटक, पटकथा और कहानियों का साग्रह लेखन करवाकर प्रकाशित की गई है|

Deshaj Bachpan ki Banavat.

इस लेख में व्यावसायिक शिक्षा को व्यापक ऐतिहासिक संदर्भों के साथ औपचारिक शिक्षा तथा गरीबी के उपनिवेशवादी तथा उत्तर उपनिवेशवादी विमर्शों में देखने का प्रयास किया गया है| यह भी देखा गया है कि संस्कृति किस प्रकार इतिहास तथा श्रमशक्ति से प्रभवित होती है| लेख तीसरी दुनिया के हाशिए के बच्चों पर हुए ताजा अध्ययनों के प्रति प्रश्नाकुलता से आरंभ होता है| इसमें यह दर्शाया गया है कि उपनिवेशवाद, आधुनिक शिक्षा-पद्धति के प्रतिष्ठापन तथा बच्चों के श्रम को मजदूरी में तब्दील करने के माध्यम से गरीबों के जीवन को किस प्रकार आहात करता है|

Khel ki Avdharna

बच्चों के जीवन में खेल के स्थान और महत्ता को लेकर आम सहमति है लेकिन यह विचारणीय विषय है कि खेल के मायने क्या हैं और शिक्षा के साथ खेल का क्या संबंध है? इस लेख में खेल की अवधारणा और शिक्षा से इसके संबंध पर विचार किया गया है|

शैक्षिक सुधारों की दिशा में एक पहल

यह लेख अधिकार की अवधारणा को न्याय के साथ जोड़ते हुए शिक्षा के अधिकार को भारत में शैक्षिक सुधारों के लिए एक आवश्यक कदम मानता है| हालांकि इस अधिकार के साथ आने वाली चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए यह लेख बतात है कि शिक्षक पर्शिक्षणों में बेहतरी, शिक्षकों को उचित समर्थन की व्यवस्था, शैक्षिक निर्णय की प्रक्रियाओं का विकेन्द्रीकरण इस कानून को सही मायने में क्रियान्वित के लिए प्रभावी कदम होंगे|

शिक्षा का आधिकार

यह लेख शिक्षा के अधिकार विधेयक में 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के प्रावधान की बजटीय प्रावधानों से तुलना करते हुए यह दर्शाने का प्रयास करता है कि यदि तमाम समितियों द्वारा शिक्षा के लिए सुझाए सकल घरेलू उप्ताद 6 के प्रतिशत वित्त का प्रबंधन कर दिया जाए (जो कि अभी लगभग 3.5 प्रतिशत है) तो भी इस आयु वर्त के सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया करवा पाना मुमकिन नहीं होगा| इस समस्या से निजात दिलाने के लिए लेखक तर्क करते हैं कि इसका एकमात्र तरीका शिक्षा पर लागत कम करना है और यह तब ही संभव है जब कम वेतन पर शिक्षकों को नियुक्त किया जाए|