संसाधन

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


Taaleem ki buniyaad

गांधी जो और डॉ. जाकिर हुसैन के शिक्षा-चिंतन और बुनियादी शिक्षा प्रयोग पर प्रो. कृष्णा कुमार और प्रो. मोहम्मद तालिब के विचार आप पिछले अंकों में पढ़ चुके हैं| यहां हम गांधी जी के शिक्षा-दर्शन से प्रेरित श्रम भारती खादीग्राम के शिक्षण-प्रयोग के बारे में जानकारी प्रस्तुत कर रहे हैं| डॉ. अवध प्रसाद ने स्वयं एक विधार्थी के रूप में बुनियादी शिक्षा के ये अनुभव अर्जित किये थे जो आज भी उनकी स्मृति में विधमान हैं|

Hatheli per banaa chinah

शिक्षक द्वारा बच्चों को स्कूल में दी जाने वाली यातनाओं की त्रासद स्मृत्यां पीछा नहीं छोड़तीं| ये बच्चे के मन में भय और कमजोरी का लंबे समय जमे रहने वाला नकारात्मक भाव तो पैदा करती ही है, कई बार अपने जख्मों के निशान भी छोड़ जाति है| स्कूली यातना के ऐसे ही जख्म से यह संस्मरण है| शिक्षक की ट्यूशन-वृत्ति से इस प्रवृति का संबंध भी यहां दिखा रहा है|

शिक्षा की पुनर्व्याख्या

‘शिक्षा-विमर्श’ के खेलों में उठाये गये मुद्दों पर हमें शिक्षा से संबंद्ध व्यक्तियों और पाठकों की गंभीरता प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं इन्हें हम इस स्तंभ में प्रकाशित कर रहे हैं| गतांक में आपने शिक्षा को पुनर्परिभाषित करने से संबंधित विचार पढ़े, इस बार शिक्षा के समुचयूप्क्रम की पुनर्व्याख्या का मुद्दा उठाया गया है| साथ ही, बच्चों कोसाफल असफल घोषित करने वाले परीक्षा के कारोबार का भी जायजा लिया गया है|

Alipur gaon mein shiksha : Bachche jaanane Walon ke roop mein

अलीपुर गांव में स्कूली शिक्षा, बच्चों की समझ और उनके अनुभवों के अध्ययन की श्रृंखला में यह अंतिम लेख है| इस लेख में बच्चों के स्कूली ज्ञान और स्थानीय ज्ञान के बीच विधमान अंतराल को दर्शाया गया है| बच्चों के संवादों में प्रयुक्त ज्ञान का तत्व मीमांसक विश्लेषण किया गया है| प्रस्तुत अध्ययन बताता है कि स्कूली ज्ञान सामान्यतः ‘नये’ के रूप में अनुभूत नहीं दिखता या ‘नया रचा नहीं जाता’ बल्कि पहले से मौजूद का ‘अर्जित किया जाना’ है| ऐसा लगता है कि पहले से ज्ञात बातों में जो बातें महत्वपूर्ण और जानने योग्य है उन्हें ग्रहण करना है| पुववर्तियों से इस ज्ञान को लेना और संरक्षित करना है और आगामी पीढ़ी को सौंप देना है|

जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम : एक टिप्पणी

जिला प्राथमिक शिक्षा परियोजना (डी. पी. ई. पी.) विदेशी ऋण संचालित है जिसमें से अधिकांश व्याज सहित चुकाया जाना है| ऐसी स्थिति में प्रत्येक जागरूक व्यक्ति को इस परियोजना की छान-बीन करने और उस पर अपनी राय देने का अधिकार ही नहीं है बल्कि यह उसके कर्तव्य का हिस्सा है| ‘शिक्षा-विमर्श’ ऐसी जनतांत्रिक बहस के लिए खुला मंच है| यह टिप्पणी एक और समस्या की तरफ भी ध्यान खींचती है| विकेन्द्रीकरण और पास फेल, परीक्षा – रहित प्रणाली एवं अनग्रेडेड कक्षा शिक्षण तीनों ही प्राथमिक शिक्षा में काफी महत्वपूर्ण विचार हैं| इन के पिच्छे शिक्षा-दर्शन एवं शिक्षण शास्त्र है| और ये नकारात्मक अवधारणा में नहीं बल्कि बहुत ही सकारात्मक विचार हैं प्राथमिक शिक्षा के विकास में| पर जब शैक्षिक विचारों की सैद्धांतिक पृष्ठभूमि को समझे बिना, व्यापक तुअर पर खुलासा किये बिना, उन्हें सीमित एवं संदिग्ध उद्देश्यों के लिए काम में लिया जाता है (जैसा की बहु-कक्षा शिक्षण के नाम पर हो रहा है) तो एक भ्रांति फैलती है| यह भ्रांति उन लोगों को सार्वधिक परेशान करती है जिनका शिक्षा से सरोकार है| अतः अच्छे विचारों का बीन तैयारी एवं उन्हें ठीक से समझे, अधकचरा प्रचार उन विचारों की भावी संभावनाओं को खत्म करता है| उक्त तीनों धारणाओं पर यह प्रतिकूल टिप्पणी यही सिद्ध करती है| इन विचारों का शैक्षणिक महत्व आंकना अभी बाकी है|

Bachchon ki pathay samaagri : Kuchh vichaar

प्राथमिक शिक्षा के उन्नयन को लेकर चलाये जा रहे कार्यक्रमों में गुणवत्ता की बहुत चिंता की जा रही है| इसके मद्देनजर पाठ्यक्रम-परिवर्तन और पाठ्यक्रम निर्माण में सामान्यतः इस पर जोर दिया जाता है कि यह बल केन्द्रित, गतिविधि आधारित और स्थानीय परिवेश से जुड़ा हो| लेकिन उक्त पाठ्यक्रम के अन्तर्गत जब पाठ्य-सामग्री तैयार की जाति है, तो कई बार बच्चों के सोच और स्थानीय परिवेश की विशिष्टताओं की उपेक्षा कर दी जाति है| पाठ्य-पुस्तकों में चित्रों के प्रयोजन और प्रासंगिकता के प्रति भी अक्सर पर्याप्त जागरूकता नहीं दिखायी देती| प्रस्तुत लेख में श्री जोशी ने बहुत सारी उलझनों एवं कठिनाइयों का जिक्र किया है, क्या हम इन उलझनों को और सटीक अभिव्यक्ति दे सकते हैं? क्या इनके कुछ सार्थक हल खोज सकते हैं?

Maa-baapaon ki mathapchchi

गिजूभाई भारतीय शिक्षा जगत में एक सुपरिचित नाम हैं| वे उन शिक्षाशास्त्रियों में हैं जो बाल मन की गहराइयों का प्रत्यक्ष अनुभव रखते हैं| उन्होंने एक सम्पूर्ण शिक्षाशास्त्र रचेने का प्रयत्न किया जिसमें ऐसा कोई दैत नहीं है कि यह मेरे बच्चों के लिए नहीं बल्कि आपके बच्चों के लिए होगा| बच्चे ही नहीं, अभिभावक और शिक्षक भी उनकी चिंतन-धारा में बराबर की जगह रखते हैं| उनकी पुस्तकें आतंकित नहीं करती बल्कि सरल, सुबोध शैली और सहज प्रवाह से आकर्षित करती हैं| गिजू भाई के शिक्षा-चिंतन की जड़ें भारतीय जमीन में गहरे धंसी हैं लेकिन वे आतितोंमुख नहीं हैं| उन्होंने मोंटेसरी पद्धति का भारतीयकरण किया|