संसाधन

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


राज्य संप्रदाय विशेष के स्कूलों को पैसा क्यों दे?

आम तौर पर यह स्वीकार किया जाता है कि उदार राज्यों को अनिवार्य शिक्षा के लिए सार्वजनिक स्कूलों को पैसा देना चाहिए| लेकिन यह विवादास्पद है कि राज्य किसी संप्रदाय विशेष के स्कूलों के लिए भी वित्तीय प्रावधान करे| क्या इस तरह का वित्तीय समर्थन उदारवादी निष्पक्षता के सिद्दान्तों से समझौता नहीं है? प्रस्तुत लेख में लेखक इस मुद्दे पर दो परस्पर विरोधी मतों का आकलन कर रहे हैं| दोनों ही नजरिये उदारवादी निष्पक्षता की अलग अलग व्याख्याएं करते हैं और दोनों ही शिक्षा तथा अच्छाई की संकल्पना के संबंधों पर साफ-साफ अलग दिखने वाला रुख अपनाते हैं| चूंकि इन दोनों में से कोई भी नजरिया संतुष्ट करने वाला नहीं है, यह तर्क देते हुए लेखक एक वैकल्पिक नजरिये को सामने रखते हैं जिसके अनुसार कुछ खास परिस्थितियों में उदार राज्य का ऐसे संप्रदाय विशेष के स्कूलों को वित्तीय सहायता देना उचित हो सकता है|

शिक्षा का मनोविज्ञान :उत्तरप्रदेश के मदरसे

इधर देश में मदरसों को लेकर हिन्दू कट्टरपंथी आरोप लगते रहे हैं कि मदरसे आतंकवादियों की फसल तैयार कर रहे हैं, और यह कि ये आई. एस. आई. के अड्डे हैं| इसे पूर्वग्रह ग्रसित दुष्प्रचार माना जाता है| ऐसा मानना तब और उचित हो जाता है कि ऐसे आरोपों की प्रतिक्रिया में इन कट्टरपंथियों द्वारा मदरसों की तर्ज पर हिन्दू कट्टरपंथ की दीक्षा शालाएं स्थापित करने की कोशिश की जाती है| तथापि यदि शैक्षिक दृष्टि से देखा जाये तो मदरसों की स्थिति कतई संतोषप्रद नहीं कही जा सकती| किन्तु इनकी स्थिति बाहर की दुनिया के लिए मिथक जैसी बनी हुई है| इनकी बेहतरी का सिर्फ यही रास्ता दिखता है कि जिस समुदाय से मदरसे गहरे संबंधित हैं उसी से इन्हें लेकर आलोचनात्मक चिंतन की शुरुआत हो| यह एक ऐसा ही प्रयास है| वाशीम अहमद का यह लेख मूलतः ‘इकॉनोमिक एण्ड पॉलिटिकल विकली’ के मार्च’ 25-31, 2000 अंक में छपा था| साभार पुनर्प्रकाशित|

देशज बचपन की बनावट :उपनिवेशवाद व्यवसायिक शिक्षा तथा कामगार- बच्चा

इस लेख में व्यावसायिक शिक्षा को व्यापकऐतिहासिक संदर्भों के साथ औपचारिक शिक्षा तथा गरीबी के उपनिवेशवादी तथा उत्तर उपनिवेशवादी विमर्शों में देखने का प्रयास किया गया है| यह भी देखा गया है कि संस्कृति किस प्रकार इतिहास तथा श्रमशक्ति से प्रभावित होती है| लेख तीसरी दुनिया के हाशिए के बच्चों पर हुए ताजा अध्ययनों के प्रति प्रश्नाकुलता से आरंभ होता है| इसमें यह दर्शाया गया है कि उपनिवेशवाद, आधुनिक शिक्षा-पद्धति के प्रतिष्ठापन तथा बच्चों के श्रम को मजदूरी में तब्दील करने के माध्यम से गरीबों के जीवन किस प्रकार आहत करता है|

स्कूल छोड़ने वाले बच्चे और स्कूल

जयपुर के फागी विकास खंड में कार्यरत संस्था विशाखा इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज ससेक्स (यू. के.) के साथ मिलकर शिक्षा में जाति और लैंगिक भेदभाव और उसके प्रभावों पर अध्ययन कर रही है| इस अध्ययन में राजस्थान के टोंक व् गंगानगर जिलों की कुछ दलित बहुल आबादियों को अध्ययन के लिए चुना गया है| यह इस अध्ययन की शोध टीम के एक सदस्य की फील्ड वर्क डायरी के कुछ अंश हैं जिनमें बच्चों के बीच में स्कूल छोड़ने के कुछ कारणों का पता चलता है| डायरी में संदर्भित स्कूल गंगानगर की दलित आबादी से घिरा एक सरकारी स्कूल है| इन अनुभवों में यह भी देखा जा सकता है कि सरकारी स्कूल अपनी ओर से बच्चों को जोड़े रखने का शायद ही कुछ प्रयास करते हैं|

अमिता शर्माशिक्षा की धारणा :ज्ञान्मीमासीय द्वंद्व और शैक्षणिक सुधार

इतिहास ने, विभिन्न ज्ञान संग्रहों एवं खोज विषयों को कायम रखने आधार के रूप में माने गये प्रतिभासों के बीच अंतर की प्रकृति में बहुत से भेद देखे हैं| इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पतिभासों में यथार्थ रूप से कोई अंतर नहीं है| लेकिन, इसक तात्पर्य यह जरुर है कि शिक्षा द्वारा पाठ्य विषयों के ढाचों को स्पष्ट तौर पर विधार्थियों के सामने रखा जाना चाहिए ताकि वे विषयों की क्षमताओं, कमियों और संभावित विकल्पों को पहचानने में सक्षम बनें| स्कॉब समस्याओं के उन तीन समूहों की समीक्षा करते हैं जो पाठ्य विषयों की संरचना के सवाल में अन्तर्निहित हैं| पाठ्य विषयों की व्यवस्था (कितने पाठ्य विषय हैं व् एक दूसरे से कैसे संबंधित हैं); प्रत्येक पाठ्य विषय का सारांश (उनकी सैद्धांतिक संरचना); एवं खोज की विधियां तथा प्रमाणिकता के मापदण्ड|

Avdhaarnaao ki nirmaan prakriya

सीखने में पूर्व अनुभवों को नये अनुभवों से जोड़ते हुए अवधारणाएं बनानी होती हैं| अवधारणाओं की निर्माण प्रक्रिया अमूर्तन के आधार पर टिकी है| यह जटिल प्रक्रिया प्रारंभिक स्तर पर भाषा और गणित शिक्षण के विश्लेषण से समझी जा सकती है| रिचर्ड आर. स्केम्प ने अपनी पुस्तक ‘दि साइकोलोजी ऑफ़ मेथमेटिक्स’ (पेंगुइन बुक्स, ) में इस प्रक्रिया का विशद् विवेचन किया है| यहां इस पुस्तक से अवधारणाओं की निर्माण प्रक्रिया से संदर्भित कुछ अंशों का अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है|

शिक्षा:पंचायत और विकेन्द्रीयकरण

पंचायती राज प्रणाली भारत में राज्य सत्ता के विकेन्द्रीकरण का आधार मानी गयी है| शिक्षा को पंचायती राज के अन्तर्गत लाकर इसके स्थानीय प्रबंधन की संभावनाएं देखी गयी हैं| उल्लेखनीय है कि शैक्षिक प्रबंधन के विकेन्द्रण और शिक्षा के जनतांत्रिकरण का मुद्दा भी लगातार उठता रहा है| में संविधान संशोधन के बाद प्रभावी पंचायती राज प्रणाली शैक्षिक विकेन्द्रीकरण और प्रारंभिक शिक्षा के सार्वजनीनकरण की दिशा में कितनी कारगर हुई है, यह देखना निश्चय ही एक जरुरी उपक्रम है| पश्चिम बंगाल देश के उन राज्यों में से है जिनके बारे में माना जाता है कि वहां पंचायती राज ने जड़ें जमा ली हैं| इस शोधपत्र में पश्चिम बंगाल में पंचायत, विकेन्द्रीकरण और शिक्षा के अन्तर्सम्बन्धों की बस्तुपरक छानबीन की गयी है|

Prarambhik stur per sangget sikshan

प्रारंभिक स्तर पर संगीत शिक्षण के पक्ष में अनेक तर्क दिये जाते हैं परन्तु इस स्तर पर संगीत शिक्षण की वास्तविक स्थिति इसे एक सदेच्छा भर ठहरती है| संगीत शिक्षण के दायरे में सभी बच्चों को लाना असल में एक चुनौती भरा काम है| शिक्षा विषयक अन्य पहलुओं की भांति इस चुनौती से दो चार होने का दारोमदार भी शिक्षिकों के ऊपर है| यह लेख प्रारंभिक स्तर पर संगीत शिक्षण की महत्ता, इसकी प्रकृति और अधिगम प्रक्रिया की समान्य अवधारणाओं का विवेचन प्रस्तुत करता है| साथ ही सीखने की प्रक्रिया और सिखाने में अभयास, प्रयत्न एवं व्यवस्था पर की गई टिप्पणियां संगीत शिक्षण तक की सार्थकता हों ऐसा नहीं है| सिखाने पर यह नजरिया आजकल प्राथमिक शिक्षा के विमर्श में कम देखने को मिलता है|