"आज के समय में जबकि शिक्षा का बाजारीकरण हो रहा है, बाजार कि सेवा के लिए तमाम पाठयक्रम चलाए जा रहे हैं| शिक्षा अदद नौकरी का जरिया बन गई है, ऐसे समय में प्रो. दयाकृष्ण का यह व्याख्यान शिक्षा के संदर्भ में अन्तर्दृष्टि प्रदान करता है कि शिक्षा द्वारा सिर्फ ज्ञान, सूचनाएं और बुद्धिमता अर्जित करना ही नहीं है बल्कि गंभीरता, प्रतिबद्धता, ईमानदारी, सहयोग एवं अन्य केन्द्रित चेतना अर्जित करना भी है|
व्याख्यान में कहा गया है कि सही और गलत का फर्क तथा स्थिर नहीं है| ऐसे में विधार्थी को इस फर्क, जो कि है, के प्रति चेतन एवं संवेदनशील किया जा सकता है| विधार्थी इसे चिन्तन एवं स्व-प्रयत्न से अर्जित कर सकता है| इस फर्क का वोध एवं सार्थक जीवन जीने की इच्छा पैदा करना शिक्षा का उद्देश हो सकता है|"
संसाधन
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स्कूल में अलबर्ट आइंस्टाइन
Pathyapusatakon ki rajniti aur bachho ka bhavishya
"यह लेख राष्ट्रीय अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा विकसित हिंदी की पाठ्यपुस्तकों पर उठे विवाद को केंद्र में रखकर सवाल उठता है कि क्या यह विवाद शिक्षणशास्त्र की विशिष्ट प्रकृति और पाठ्यपुस्तकों से जुड़ी प्रक्रियाओं के प्रति संवेदनशील हुए बिना तथा अभिभावकों एवं शिक्षकों की शिरकत के बिना सार्थक होगा?
पाठ्यपुस्तकों में रचना चयन के आधार प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि लोकतंत्र में व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने का अधिकार सभी को है| साहित्यकार भी अपने इस दायित्व का निर्वाह करते हैं| भाषायी पाठ्यपुस्तकें साहित्य में यथार्थवादी चित्रण के माध्यम से सामाजिक यथार्थ एवं निम्नवर्गीय बदहाली के कारणों से अवगत करा सकती हैं|"
पाठ्यपुस्तकों में रचना चयन के आधार प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि लोकतंत्र में व्यवस्थाओं पर सवाल उठाने का अधिकार सभी को है| साहित्यकार भी अपने इस दायित्व का निर्वाह करते हैं| भाषायी पाठ्यपुस्तकें साहित्य में यथार्थवादी चित्रण के माध्यम से सामाजिक यथार्थ एवं निम्नवर्गीय बदहाली के कारणों से अवगत करा सकती हैं|"
Vyarth shodh nirarthak sidhant aur jokhim mein shiksha
यह लेख अमेरिकी शिक्षा जगत में हो रहे शैक्षिक शोधों के बारे में है और हमारे यहाँ के संदर्भ में भी समीचीन है| शोध के फलते – फूलते व्यवसाय पर व्यंग्य करते हुए लेख में कहा गया है कि इन शोधों में कुछ पूर्व धारणाएं काम करती हैं और ये पर्व धारणाएं ही अविचारित और दोषपूर्ण हैं| लेख में, जैसा शीर्षक से भी धवनित होता है कि अधिकांश शोधों से यह अपेक्षा रहती है कि वे भविष्यवाणी करें लेकिन किसी भी शोध से प्राप्त नतीजे किसी अन्य समस्या में नुस्खे केतौर पर काम नहीं लिए जा सकते| ऐसे शोध शिक्षा में किसी काम के नहीं हैं जो प्रेक्टिस को दिशा नहीं देते| ऐसे शोध तितली पकड़ने या ताश खेलने के समान हैं जिनमें व्यस्तता तो रहती है लेकिन हासिल कुछ नहीं होता|
चित्रपहेली
Behtar samaj ke nirman mein pustkalay ki bhumika
पुस्तकालयों का सञ्चालन शिक्षा का ही आनुषांगिक हिस्सा है| पुस्तकालय स्कूली शिक्षा से इतर सीखने का माध्यम होते हैं| इस लेख में पुस्तकालयों की जरुरत को समाज में रचनात्मक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों के मंच के रूप में देखा गया है| यह लेख बच्चों के लिए वैकल्पिक गतिविधियां सुझाता है जिससे कि उनकी रचनात्मक उर्जा को दिशा मिल सके और यह तभी संभव है जब कि पुस्तकालय उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरे|
चोंच पोछने के लिए रुमाल नहीं इसलिए पंखो से रगड़ रहे हो
गाने के साथ-साथ बदलती प्रजाति
Vaani ka vikaas
"बच्चे की वाणी के विकास के संदर्भ में इस लेख में बताया गया है कि आरंभ में बच्चे की मौखिक प्रतिक्रियाएं – जो कि स्वाभाविक होती हैं – अनेक बाहरी प्रभावों से जुड़ी रहती हैं| खास स्थितियों के दोहराव से मौखिक प्रतिक्रियाएं अनुकूलित प्रतिक्रियाओं में तब्दील होने लगती हैं जिसमें कि सामाजिक संपर्क का महत्वपूर्ण स्थान होता है|
वायगोत्स्की इस लेख में एक महत्वपूर्ण स्थापना यहाँ भी देते हैं कि बच्चे की वाणी जो कि आरंभ में मौखिक प्रतिक्रियाओं के रूप में अभिव्यक्त होती है विचार से पुर्णतः स्वतंत्र रहते हुए विकसित होते हैं और कालान्तर में दोनों एकाकार होने लगते हैं|
लेख में आए पारिभाषिक शब्दों का अनुवाद एवं अर्थ अन्त में दिया गया है|"
वायगोत्स्की इस लेख में एक महत्वपूर्ण स्थापना यहाँ भी देते हैं कि बच्चे की वाणी जो कि आरंभ में मौखिक प्रतिक्रियाओं के रूप में अभिव्यक्त होती है विचार से पुर्णतः स्वतंत्र रहते हुए विकसित होते हैं और कालान्तर में दोनों एकाकार होने लगते हैं|
लेख में आए पारिभाषिक शब्दों का अनुवाद एवं अर्थ अन्त में दिया गया है|"