संसाधन

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


Bachhe, Pathyapustke aur raajniti

"यह व्याख्यान पाठ्यपुस्तकों पर चलने वाली बहस एवं निर्माण प्रक्रिया के संदर्भ में मिडिया एवं राजनीती की भूमिका की व्यापक संदर्भो में पड़ताल करता है और बताता है कि यह बहस पूर्णतः पूर्व-निर्धारित मानदण्डों एवं आत्म-प्रतिनिधित्व के सवालों पर ही केन्द्रित रहती है| इस बहस में बच्चों की क्षमताओं, सिखने की प्रक्रिया एवं रुचियों तथा शिक्षक की हैसियत और उनके विकसित हिने के अवसरों को कोई स्थान नहीं दिया जाता| साथ ही कहा गया है कि हमें इस पर विचार करना चाहिए कि पाठ्यपुस्तकें हमारा किस प्रकार का राजनैतिक सामाजिकरण करती हैं, इनसे राष्ट्र एवं समाज की कैसी कल्पना बनती है? इस सब पर बहस के बजाए पाठ्यपुस्तकें बच्चों को ‘अनुशासित’ करने एवं उनके ‘चरित्र निर्माण’ को संबोधित होती हैं|
प्रो. पुरुषोत्तम अग्रवाल एनसीईआरटी की हिंदी की पूर्व पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रुपरेखा 2005 के अनुरूप हिंदी की नई पाठ्यपुस्तकों की निर्माण से जुड़े हैं| ये पुस्तकें – कक्षा 1, 3, 6, 9, 11 – अप्रैल, 2006 से लागू हो चुकी हैनौर शेष कक्षाओं की अप्रैल, 2007 से लागू होंगी|"

Gunvatta ki bahas ka itihash.

‘शिक्षा में गुणवत्ता’ आम प्रचलित मुहावरा हो चूका है| इस शोधपरक लेख में गुणवत्ता को शिक्षा में अन्तर्निहित विशेषता मानते हुए कालान्तर में इस विचार में आए महत्वपूर्ण परिवर्तनों को रेखांकित किया गया है और बताया गया है कि बच्चों की क्षमताओं, रुचियों, संज्ञानात्मक विकास, तथा बच्चों की सक्रिय भागीदारी और सीखने की प्रक्रिया में उन्हें अहमियत आदि सवालों को लेकर यह बहस नै नहीं है| हालाँकि शिक्षा की बहस में 1960 के आसपास इसे मान्यता मिली| साथ ही नव उदारवादी अर्थव्यवस्था एवं बाजारवादी ताकतों के बीच गुणवत्ता को सही मायने में बनाए रखने के लिए प्रत्येक स्कूल के स्वभाव को समझने एवं गुणवत्ता के मुदों पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता पर बल देता है|

Rastravaadi Andolan aur rastravaadi shiksha

"वर्तमान में ऐसे अनेक राजनैतिक-सामाजिक संदर्भ हमारे सामने उपस्थित होते हैं जो हमें अतित में झांकने को मजबूर/प्रेरित करते हैं| अतीत की यह यात्रा कई बार सांस्कृतिक अस्मिता की खोज में होती है तो कई बार गौरवशाली अतित को खोज नकलने के प्रयासों में होती है| किसी भी समाज के लिए यह तो आवश्यक है कि अपने विकास के लिए अतीत की पुनर्खोज करे| ऐसा अतीत जो विकासमान प्रक्रिया में समाज को दिशा प्रदान कर सके|
यह लेख प्राक्-औपनिवेशिक तथा औपनिवेशिक भारत में शिक्षा स्थितियों एवं विचारों की पड़ताल करता है| किन्हीं सीधे-सादे निष्कर्षों की बजाए स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान शिक्षा स्थितियों एवं प्रचलित मतों को हमारे सम्मुख रखता है|"