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Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


शिक्षा आधिकार कानून

प्रो. अनिल सद्गोपाल शिक्षा के अधिकार कानून को नवउदारवादी एजेण्डा के एक नए पैंतरे के तौर पर रेखांकित करते हैं| इस कानून की खिलाफ करते हुए वे कहते हैं कि यह कानून बजाय मौजूदा शिक्षा व्यवस्था में बेहतरी के इसकी खामियों को यथावत बनाए रखने में मदद करेगा| उनका मानना है कि शिक्षा के अधिकार को सही मायने में तभी सुनिश्चित किया जा सकता है जब सभी बच्चों के लिए समान गुणवत्ता की शिक्षा मुहैया कराने के लिए पड़ोसी स्कूल पर आधारित समान स्कूल प्रणाली को लागू किया जाएगा|

शिक्षा का आधिकार कानून

शिक्षा का अधिकार विधेयक आने के बाद शुरू हुई बहस से उपजे सवालों को ध्यान में रखते हुए यह लेख इस विधेयक के प्रावधानों का खुलासा करता है| साथ ही कोठारी आयोग में वर्णित समान स्कूल प्रणाली के प्रस्ताव के साथ इस विधेयक के प्रावधानों की तुलना करते हुए तर्क करता है कि कुछ खामियों के बावजूद यह विधेयक भारतीय शिक्षा व्यवस्था के लिए एक प्रगतिशील कदम है और कोठारी आयोग की समान स्कूल प्रणाली से आगे का विचार है|

शिक्षा का आधिकार कानून

प्रो. कृष्ण कुमार इस बातचीत में शिक्षा के अधिकार कानून के आने को भारतीय समाज द्वारा सौ साल से सभी बच्चों की शिक्षा के लिए देखे गए सपने को यथार्थ में बदलते देखते हैं| साथ ही उनका मानना है कि इस कानून के आने के बाद शिक्षा के आन्तरिक एवं संस्थाई विमर्श का दयारा व्यापक समाज के लिए खुलेगा| इस कानून से निकलने वाली चुनौतियों को सामने रखते हुए वे कहते हैं कि इसे सही मायने में लागू करने के लिए संस्थागत एवं प्रशासनिक क्षमताओं में विस्तार करना होगा तथा इस कानून को सार्थक बनाने के लिए साझे सामाजिक प्रयासों की जरुरत होगी|

शिक्षा का आधिकार कानून

प्रो. शान्ता सिन्हा का मानना है कि शिक्षा का अधिकार कानून वर्तमान शैक्षिक स्थितियों में शिक्षा की बेहतरी के लिए परिवर्तनकारी कानून साबित होगा और बच्चों को उत्पीड़नकरी स्थितियों से मुक्त करेगा| इस कानून के प्रावधानों से शिक्षा में दीर्घकालीन परिवर्तन आएंगे एवं यह कानून देश के दीर्घकालीन विकास एवं लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने की दिशा में काम करेगा|

कम लागत की निजी स्कूली शिक्षा

"लगभग सभी विकासशील देशों में सभी बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के प्रयासों में ‘कम लागत में शिक्षा’ को एक युक्ति की तरह प्रस्तुत किया गया है| भारत में भी शिक्षा की गुणवत्ता और कम लागत की शिक्षा को एकरूप करके प्रस्तुत करने की मुहीम जरी है| शिक्षा के अधिकार विधेयक के आने के बाद यह बहस चल रही है कि शिक्षा के लिए आवंटित बजट में सभी बच्चों को शिक्षा कैसे मुहैया करवाई जाए| इसका एक तरीका शिक्षा पर उअर शिक्षक के वेतन में लागत कम करना सुझाया गया है|
यह लेख गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कम लागत की शिक्षा को एकरूप मानने की भ्रांति को सामने रखते हुए, इसके आदर्श बतौर निजी स्कूलों को उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करने को प्रश्नित करता है| दरअसल यह लेख पंकज जैन एवं रविन्द्र एच. ढोलकिया के लेख के प्रयुत्तर में लिखा गया है|"

स्कूल मास्टर

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में शाला संस्कृत, पाठ्यचर्या एवं शिक्षक-बालक संबंधो, के प्रति विचारक असंतोष व्यक्त करे रहे हैं| टैगोर का यह लेख बच्चे की प्रकृति, शाला संस्कृति एवं शिक्षक की भूमिका के द्वन्द्व को तीव्रता से प्रकट करता है| टैगोर बताते हैं कि बच्चे के विकास में स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण स्थान है और यह स्वतंत्रता स्थान एवं गतिविधियों के उपयोग तक ही सीमित नहीं है बल्कि मानवीय रिश्तों में भी होनी चाहिए| यह लेख बच्चे की प्रकृति एवं क्रियाशील मस्तिष्क को अनुशासन के नाम पर दबाए जाने का विरोध एवं शाला की समस्त प्रक्रियाओं में, बच्चे की सक्रिय भागीदारी महत्व को रेखांकित करता है|

आज के छात्र और शिक्षा

भूमण्डलीकरण और मिडिया के व्यापक संचार ने सांस्कृतिक संघात की स्थिति उत्पन्न की है| दूसरी ओर बाजार के वर्चस्व और उपभोक्तावाद के बोलवाले ने पूर्व-प्रचलित आर्थिक समीकरणों को बदल दिया है| शिक्षा के पारंपरिक पाठ्यक्रम अब व्यक्ति विकास के पहले जैसे अवसरों का सृजन नहीं करते| इस संक्रमण से शिक्षक की हैसियत में क्या परिवर्तन आया है और कौन-सी चुनौतियां उसके समाने हैं, इन पहलुओं पर यहां विचार किया जा रहा है|

नीलबाग का निहितार्थ

शिक्षण की मूल्यांकन-प्रक्रिया ऐसा आइना है जिसमें उस शिक्षण-प्रणाली के पीछे रही सोच की गंभीरता या छिछलेपन का अक्स देखा जा सकता है| भारतीय शिक्षा-व्यवस्था की मौजूदा मूल्यांकन प्रणाली को डेविड ‘घनचक्कर की पहेली’ योजना कहते हैं| इसकी व्यावहारिक परिणति इस वृतान्त में उजागर होती है; ग्रैडगाइंड महाशय कहते हैं, “हमें इन लड़कियों को तथ्यों के अलावा कुछ नहीं पढ़ना चाहिए|” परिणामस्वरूप लुइस तथ्यों की शिक्षा प्राप्ति व् असफल वैवाहिक जीवन के बाद अपने पिता से कहती है, “आपने यदि मुझे अपनी कल्पनाशक्ति का कुछ भी अभ्यास करने दिया होता तो मैं आज लाखों गुणा ज्यादा बुद्धिमान होती|” यह लेख के आसपास लिखा गया लगता है| पर इसमें न्यूनतम अधिगम स्तर की पदचाप साफ सुनाई दे रही है| और यह इसी खतरे की तरफ इशारा करता हुआ लगता है|

मूल्यांकन का मूल्यांकन

शिक्षण की मूल्यांकन-प्रक्रिया ऐसा आइना है जिसमें उस शिक्षण-प्रणाली के पीछे रही सोच की गंभीरता या छिछलेपन का अक्स देखा जा सकता है| भारतीय शिक्षा-व्यवस्था की मौजूदा मूल्यांकन प्रणाली को डेविड ‘घनचक्कर की पहेली’ योजना कहते हैं| इसकी व्यावहारिक परिणति इस वृतान्त में उजागर होती है; ग्रैडगाइंड महाशय कहते हैं, “हमें इन लड़कियों को तथ्यों के अलावा कुछ नहीं पढ़ना चाहिए|” परिणामस्वरूप लुइस तथ्यों की शिक्षा प्राप्ति व् असफल वैवाहिक जीवन के बाद अपने पिता से कहती है, “आपने यदि मुझे अपनी कल्पनाशक्ति का कुछ भी अभ्यास करने दिया होता तो मैं आज लाखों गुणा ज्यादा बुद्धिमान होती|” यह लेख के आसपास लिखा गया लगता है| पर इसमें न्यूनतम अधिगम स्तर की पदचाप साफ सुनाई दे रही है| और यह इसी खतरे की तरफ इशारा करता हुआ लगता है|