Resources

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


स्कूली शिक्षा : एक नयी दृष्टि

"इस साक्षात्कार के साथ प्रकाशन के समय ‘इंडिया इंटरनेश्नल सेन्टर क्वार्टरली’ (वाल्यूम 10, नंबर 1, 1983) पत्रिका के सम्पादक की यह टिप्पणी छपी थी : “बच्चों की पुस्तक के लेखक के रूप में डेविड ऑसबरॅा का नाम सुपरिचित है| भारत में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस द्वारा प्रकाशित उनकी पुस्तकें गणित से लेकर पर्यावरण तक तमाम विषयों से संबंधित हैं| ऑसबरॅा ने कई वर्ष कृष्णमूर्ति के ऋषिवैली स्कूल में शिक्षण कार्य किया, बाद में ब्रिटिश काउंसिल की सेवा में रहे| और अन्ततः उन्होंने बंगलौर के निकट एक छोटे से गावं में स्वयं अपना स्कूल शुरू करने का फैसला कर लिया|
स्कूल में इस समय दो साल से 21 साल तक की उम्र के 27 छात्र हैं| समान्य रूप से प्रचलित क्लास रूम प्रणाली का सहारा नहीं लिया जाता है क्योंकि सभी छात्र यहां एक साथ बैठते हैं| परीक्षा प्रणाली का अस्तित्व ही नहीं है| स्कूल में प्रत्येक बच्चा अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार चीजों को जानता और सीखता है| सीखना यहां शिक्षक तथा छात्र दोनों के लिए एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है| इसके क्या नतीजे रहे? जब डेविड ऑसबरॅा इंडिया इंटरनेश्नल सेन्टर में ठहरे हुए थे तो हम उन से यह विशेष बातचीत आयोजित कर पाये| साक्षात्कारकर्ता हैं बच्चों की पत्रिका ‘टारगेट’ की संपादक रोजलिंड विल्सन|”"

नीलबाघ में शिक्षा.

निलबाग स्कूल में प्रयुक्त शिक्षा-दर्शन, शिक्षण-पद्धति और प्रशिक्षण पर डेविड ऑसबरॅा ने एक संक्षिप्त पुस्तिका जरी की थी| यह पुस्तिका डेविड की मृत्यु से कुछ समय पहले प्रसारित हुई| इस समय तक डेविड के शिक्षा विषयक विचार और निलबाग स्कूल को लेकर लोगों की दिलचस्पी काफी बढ़ गयी थी| यहां इस पुस्तिका का अनुवाद प्रकाशित किया जा रहा है, जो निलबाग के शिक्षा-प्रयोग से परिचित तो कराता ही है, शिक्षा से जमीनी स्तर पर जुड़े लोगों को प्रेरणा और मार्गदर्शन का स्रोत भी हो सकता है|

मेरी शिक्षा पढ़ती

"डॉ. ए. के. जलालुद्दीन भारत के जाने-माने शिक्षाविद् हैं| वैसे आपका उच्च अध्ययन एवं शोध कार्य तो भौतिकी में रहा है| पर भारत एवं विदेश में शिक्षा के क्षेत्र में, विशेष कर प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी के लिए, आपने बहुत काम किया है| अप राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् में संयुक्त निदेशक के पद पर भी रहे हैं| प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी आपने लंबे समय तक काम किया तथा लिटरेसी हाउस, लखनऊ में निदेशक भी रहे हैं| अभी कई संस्थाओं को स्वंतत्र रूप से परामर्श दे रहे हैं एवं प्राथमिक शिक्षा की बेहतरी की लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम से जुड़े हैं|
आपकी विशेषता है – शिक्षा-शास्त्र का विस्तृत एवं गहन अध्ययन एवं उस अध्ययन को सीधे व्यावहारिक कक्षा-शिक्षण से जोड़ कर देखना| शिक्षा-शास्त्र के विश्वकोशीय ज्ञान के बावजूद आप एक सतत शिक्षार्थी हैं और अपने ज्ञान से लोगों को डराते नहीं उनका उत्साह बढ़ाते हैं, उनकी दृष्टि को अपरिमार्जित करने में मददगार साबित होते हैं|
यह दिगन्तर, जयपुर में आयोजित (अप्रैल, 98) शिक्षा-विमर्श पर चौथा व्याख्यान था, जिसका संपूर्ण सार किंचित संपादित रूप में यहां प्रस्तुत किया जा रहा है|"

अमाप्य गतिविधियों का महत्त्व

बच्चे के शैक्षिक आकलन की पद्धतियों ने इधर काफी प्रगति की है किन्तु कई सृजनशील गतिविधियां अभी भी इनकी परिधि से बहार हैं| यह इन गतिविधयों की संश्लिष्टता है जो मूल्यांकन के लिए आज भी चुनौती बनी है| जबकि प्रत्येक शिक्षा आयोग इनका समर्थन करता है| कोठारी आयोग (1986) की रिपोर्ट में कहा गया है : “खोज और अविष्कार को महत्वपूर्ण मानने वाले युग में सृजनात्मक अभिव्यक्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाति है| शिक्षा में कला की अवहेलना से शिक्षण-प्रक्रिया दरिद्र हो जाति है|”

Balika shiksha ki durdasha kyon

भारत में बालिका शिक्षा की दशा को अभी तक ‘दुर्दशा’ ही कहा जायेगा हालांकि विकास और शिक्षा की विभिन्न योजनाओं में निस्के लिए विशेष प्रावधान और प्रलोभन समाहित किये जाते रहे हैं| बालिका शिक्षा का संबंध समाज में स्त्री की हैसियत से भी है – इस तथ्य के मद्दे नजर कुछ समग्र योजनाएं तो बनी हैं लेकिनी उनके क्रियान्वयन की समग्रता के प्रति लोगों में असंतोष है| प्रस्तुत टिप्पणी में बलिका शिक्षा के अंधेरे पक्ष को फिर से दोहराने के साथ समस्या के कुछ जटिल बिन्दुओं की और भी संकेत किया गया है|तथापि कहीं असहमति की गुंजाइश हो सकती है|

Gareeb bachchon ki shiksha

दुनियां भर में अमीरों की शिक्षा में भले ही कितनी ही ‘गुणात्मक असमानता’ हो लेकिन ‘गरीबों की लिए एक समान’ शिक्षा-व्यवस्था का प्रावधान है| विशेषकर तीसरी दुनियां के देशों में शिक्षा की दुरावस्था को लेकर कमोवेश कोई फर्क नजर नहीं आता| समीक्ष्य पुस्तक में वर्णित चार देशों के गरीब बच्चों की शिक्षा भारत के समान्य स्कूलों से विशेष भिन्न नहीं है| क्या सत्ता का गरीब तबके के प्रति नजरिया और देश की वित्तीय स्थिति शिक्षा-व्यवस्था के निर्धारण को प्रभावित करता है – इस समीक्षा की तह में कहीं यह सवाल भी छुपा है|

शमशुदीन

नये बच्चों के परिचय क्षेत्र में आते है समान्यतः शिक्षक उनकी आदतों और बाह्य कार्यकलापों के आधार पर तुरत-फुरत वर्गीकरण आरंभ कर देते हैं| जल्दी ही शिक्षक के लिए यह आकलन पुख्ता हो जाता है और लगभग आग्रह की हद तक उसके मन में बैठ जाता है| लेकिन शिक्षक का अपने आकलन पर यह विश्वास और पूर्वग्रह शिक्षण की दृष्टि से कितना घातक हो सकता है, इसका कुछ आभास इस शब्द चित्र से मिलता है| बच्चे में अनेक संभावनाएं और क्षमताएं अन्तर्निहित हैं जो समय आने पर प्रस्फुटित होती हैं|