Resources

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


लकी

जिन बालकों के मानसिक विकास की गति किन्हीं कारणों से सामान्य न होकर मंद होती है उन्हें बहुधा दोहरी समस्या से जूझना पड़ता है| एक ओर तो वे अपनी इस असामान्य स्थिति को समझ नहीं पाते, खुद पर झुंझलाते हैं और अपने को दुसरे बच्चों से बराबरी पर लाने के लिए छटपटाते हैं| दूसरी ओर, उन्हें ‘मंद बुद्धि’ बालक के रूप में अक्सर लोगों की उपेक्षा का सामना करना पड़ता है| प्रस्तुत शब्द-चित्र हमें एक ऐसे बच्चे के मन में झांकने का –अवसर देता है और यह सोचने को प्रेरित करता है कि क्या हमें ऐसे बच्चों के प्रति अधिक संवेदनशील नहीं होना चाहिये?

क्या हों शिक्षा के नए सरोकार

‘शिक्षा-विमर्श’ के मई, 99 अंक (3) में प्रो. जमनालाल बहेती का लेख ‘शिक्षा के उद्देश्यों का पुनार्निधानर’ शीर्षक से छपा था जिसमें उन्होंने बदलते वैश्विक परिदृश्य में शिक्षा के उद्देश्यों को लेकर नये सिरे स चिंतन का आग्रह करते हुए कुछ सुझाव दिये थे| इस संवाद को आगे बढ़ा रहे हैं सुरेश पंडित|

सांस्कृतिक सम्राज्यवाद और शिक्षा

राजनीति की शैक्षिक फलश्रुति अथवा शिक्षा की राजनीति पर बहुत सारे शिक्षाविद बात करना पसन्द नहीं करते; लेकिन क्या यथार्थ से आँखें मूंद लेने पर सच बदल जाता है? मार्टिन करनॉय विश्व साम्राज्यवाद और विकासशील देशों के मध्य शिक्षा के अन्तार्विरोध्ग्रस्त रिश्तों को जिस तरह से उठाते हैं, उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता| हाल ही में, हिन्दी में अनूदित करानॉय की किताब इस लिहाज से खासी चर्चित हुई है| आजादी की अर्धशताब्दी के बाद भी भारतीय शक्षा प्रणाली का सारतत्व औपनिवेशिक ही बना हुआ है - यह किताब इस समस्या को पूरी शिद्दत से सामने लाती है| बाजारवादी तंत्र के अग्रिम योद्धा विश्व बैंक द्वारा भारत में प्राथमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण के प्रयासों को मदद देने के उद्देश्य भी इससे स्पष्ट होते हैं|

Varnmala shikshan mein badhain.

संवाद क्रम में इस बार हिंदी भाषा शिक्षण के संदर्भ में वर्ण-शब्द विन्यास, उसकी व्युपत्ति, अर्थग्रहण और अर्थ्लोप की प्रक्रिया और उसके उच्चारण संबंधो पर एक टिप्पणी है| इस टिप्पणी का भाषा वैज्ञानिक पहलू हिन्दी शिक्षक के लिए अपेक्षित गंभीरता और गहरी अंतर्दृष्टि को संकेतित करता है| भाषा-शिक्षण संदर्भित समुदाय के प्रचलित भाषा-प्रयोग के प्रति संवेदनशील हो – यह इस टिप्पणी की अंतर्ध्वनि है|

Alipur gaon mein shiksha: seekhne mein vaad karne ki bhumika

इस लेखमाला के अन्तर्गत अभी तक आप अलीपुर गांव के स्कूल, शिक्षक, बच्चों और स्थानीय समुदाय के पारस्परिक रिश्तों का सूक्ष्म विवरण पढ़ चुके हैं| बच्चों का स्कूली शिक्षा को लेकर क्या नजरिया है? स्कूल में कैसी शिक्षा दी जा रही है? उसके सांस्कृतिक उत्स कहाँ हैं? शिक्षक-छात्र संबंधों के पूछे कौन-सी मूल्य-संरचना काम कर रही है? शिक्षण-प्रक्रिया और कक्षा-नियंत्रण की अन्तः प्रकृति क्या है? ऐसे प्रश्न-प्रतिप्रश्नों का पछले लेखों में पवस्तुपरक विश्लेषण किया गया| प्रस्तुत सीखने की प्रक्रिया में याद करने की भूमिका और इसके फलितार्थ पर केन्द्रित है|

शिक्षा और लोकतंत्र

अमरीकी चिंतक जॉन डीवी का शिक्षा-दर्शन में महत्वपूर्ण योगदान है| सामाजिक परिप्रेक्ष्य में स्कूल की भूमिका और शिक्षण प्रक्रिया को जॉन डीवी ने नये सिरे से परिभाषित किया| इसके पीछे एक वृहद ध्येय भी था – शिक्षा का जनतांत्रिकरण| जॉन डीवी की पुस्तकें समान्यतः हिन्दी में सुलभ नहीं हैं, ऐसे में उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक का हिंदी का हिन्दी में आना शुभ समाचार है| यह समीक्षा इस पुस्तक के बारे में संक्षिप्त विवरण है|