Resources

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


एक कचोटती याद

एक बच्चे का मन किन कठिनाइयों, दुविधाओं और विवशताओं से जूझता है, यह जानना वयस्कों के लिए थोड़ा मुश्किल है| लेकिन विडम्बना यह है कि वयस्क अक्सर बच्चों के अनुभवों को लेकर उदासीन रहते हैं| प्रस्तुत प्रसंग एक बच्चे के भीतर चलती हलचल और उसकी बाह्य परिणति को उद्घाटित करता है| यह विषय जीवन स्थितियों के असर की बचपन पर पड़ी वह खरोंच है जिसका निशान आगे तक मिटता नहीं हैं|

पहला अध्यापक

इस छोटी-सी आत्मकथात्मक पुस्तक में एक बच्चे की नजर से गावं, स्कूल और अध्यापक की भूमिका को देखा गया है| पुस्तक में एक अत्यंत पछले अंचल से शिक्षित होकर निकलने वाली पहली पीढ़ी के अनुभवों की मार्मिक अभिव्यक्ति है| साथ ही बच्चों में अन्तर्निहित संभावनाओं के बारे में भी यह पुस्तक भरोसा जगाती है| और एक समर्पित शिक्षा को कैसे विस्मृत कर देता है, इस विडम्बना को यहां गहरी वेदना से उठाया गया है|

भारत की पहली महिला शिक्षक -सावित्री बाई फुले

सावित्री बाई फुले सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण नहीं हैं कि वे महात्मा ज्योतिबा फुले की सहयोगिनी थीं| उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षक के रूप में जानना भी आवश्यक है| अगर सावित्री बाई को उनके ऐतिहासिक समय में समझा जाये, तो वे और प्रेरक लगती हैं| ऐसा लगता है कि भारतीय समाज के बुनियादी ढांचे में बहुत फर्क नहीं आया है इसलिए सवित्री बाई का ही नहीं बल्कि सगुणाबाई क्षीरसागर और फातिमा शेख जैसी शिक्षकों का अवदान स्मरणीय है| समाज परिवर्तन, दलित उभर और स्त्री-स्वातंत्र्य के मुद्दे किस प्रकार बेहतर शिक्षा से अनिवार्यतः जुडे हैं, इस इतिवृत में इस बात की झलक मिलती है|

दो दुनिया अलग-अलग

"राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एन. सी. ई. आर. टी.) ने ‘विधालयी शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या’ पर एक दस्तावेज बहस के लिए जरी किया है| ‘शिक्षा-विमर्श’ को इस बहस के मंच से संबंद्ध करना हमने प्रासंगिक माना है और देश के कई ख्यात शिक्षाविदों से उक्त दस्तावेज पर टिप्पणी देने के लिए आग्रह किया है यह दुखद प्रसंग है की अंग्रेजी जगत में इस दस्तावेज पर जैसी चर्चा है, हिन्दी क्षेत्र उसकी झलक भी नहीं है|
यह कैसी विडम्बना है कि उक्त दस्तावेज शिक्षाक्रम को राष्ट्रीय, मूल्यपरक और देशज चरित्र प्रदान करने का संकल्प व्यक्त करता है और उस पर बहस अंग्रेजी में चल रही है| बहरहाल अपनी सीमाओं के चलते हम इस पर बहस की शुरुआत कर रहे हैं|"

शिक्षा का प्रयोजन

प्रस्तुत लेख में छ: सरकारी दस्तावेजों का समीक्षात्मक आकलन करके उनमें वर्णित शिक्षा के प्रयोजन और शिक्षाक्रम की रुपरेखा को समझने का प्रयास किया गया है| इन दस्तावेजों को एक साथ देखने से एक दिलचस्प नतीजा निकलता है कि पिछले लगभग 30 वर्षों में शिक्षा निति संबंधी दस्तावेजों में निरुपित उद्देश्य उत्तरोत्तर उदार होते गये हैं| दूसरी बात, लगभग समान शब्दावली का उपयोग करने के बावजूद इन दस्तावेजों में शिक्षा के व्यापक उद्देश्य भिन्न-भिन्न हैं| शिक्षा के आदर्श भिन्न-भिन्न हैं| दस्तावेजों में राष्ट्रीय विकास और व्यक्ति के विकास का संबंध व्यक्त है लेकिन ये प्रश्न अनुत्तरित हैं: राष्ट्रीय लक्ष्य कौन व कैसे निर्धारित करता है? राष्ट्रीय विकास का अर्थ क्या है? व्यक्ति का विकास क्या होता है? राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति का व्यक्ति के विकास से क्या संबंध है? आदि|

Paathya pustako ki rajniti

सरकारी शिक्षा तंत्र में प्रयुक्त पाठ्यपुस्तकों की अन्तर्वस्तु, चित्रण और प्रस्तुतीकरण को लेकर शिक्षाविद् और शोधकर्ता असंतोष व्यक्त करते रहे हैं| ‘शिक्षा-विमर्श’ में हम पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा और विषयवस्तु का विश्लेषण प्रकाशित करतेरहे हैं| प्रस्तुत अध्ययन रपट में बिहार, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली की छठी से आठवीं तक की हिन्दी की पाठ्य-पुस्तकों में वर्णित-चित्रित अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों की स्थिति का आकलन किया गया है| यह आकलन पाठ्यपुस्तकों के पार्श्व की राजनीती को संकेतित करता है|