Resources

Explore this section to look at the rich repository of resources compiled and generated in-house by RRCEE. It includes curriculum materials, research articles, translations, and policy documents, including commission reports, resources for teachers, select articles from journals and e-books. These all are collated under in user friendly categories, with inter-sectional tags. These resources are both in Hindi and English and cover a wide range of topics.


बच्चों के लिए दर्शन विचार के झोके की तरह

मानवीय मन के बारे में निश्चित तौर पर कुछ भी कहना नामुमकिन है| बच्चों के सीखने-समझने के संदर्भ में भी कहा जा सकता है कि उसकी सिखाने की स्थितियों को निर्धारित नहीं किया जा सकता| यह कथन बच्चों के साथ काम करने के असीम क्षेत्रों की ओर संकेत करता है और इससे शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के साथ काम करने की असीम संभावनाएं खुल जाति हैं| बच्चों के साथ सोचने का काम बहुत से लोग करते रहे हैं| उन्होंने इस प्रचलित धरना को चुनौती दी है कि बच्चों के साथ दार्शनिक चिंतन संभव नहीं है| प्रस्तुत लेख ‘बच्चों के लिए दर्शन’ बच्चों के साथ संवाद से आलोचनात्मक चिंतन, स्वायत्तता, खोज एवं प्रयोग द्वारा ज्ञान निर्माण की पैरवी करता है| साथ ही लेखिका ने बच्चों के लिए दर्शन की मशीनी प्रकृति से मौलिकता के खोने का संशय भी प्रकट किया है|

शिक्षा- मेरी नज़र में

यह आलेख शिक्षक के स्वयं के एवं व्यवस्था के बारे में सजग चिन्तन (रिफ्लेक्शन) का बयान है कि सिखाने-सिखाने की अन्योन्याश्रित प्रक्रिया में किस प्रकार के आरोह-अवरोह आते हैं, कि स्वयं की शिक्षा के अनुभव एवं वैचारिक आस्था प्रतिकूल परिस्थितियों में कैसे दृष्टि प्रदान करते हैं? सहीं मायने में शिक्षाकर्म में रत हाने के पश्चात् ही शिक्षा का सही अर्थ उद्घाटित होता है| यह अनुभव आशा जगाता है कि ‘जड़’ कहे जाने वाले शिक्षा तंत्र में स्व-प्रयासों से बेहतर राह बनायीं जा सकती है| ये अनुभव हैं बैंगलोर की शिक्षिका के. टी. मारग्रेट के| यह मूल लेख का अनुवाद है|

Yeh sadak gujrat jati hai

"सत्ता की अपनी राजनीती होती है| सत्ता द्वारा सभी चीजें इसके इर्द-गिर्द ही परिभाषित की जाति हैं| शिक्षा में राजनीती के प्रभावी हस्तक्षेप का जरिया पाठ्यपुस्तकों को बनाया जाता है| जिससे कि विधार्थियों के मन को अपनी विचारधारा कद अनुकूल रंगा जा सके| यथास्थिति बनाये रखने के लिए यह प्रभाव झीना और दूरगामी होता है जो अन्ततः राजनैतिक हित साधन का ही माध्यम बनता है|
प्रस्तुत लेख में विश्लेषण किया गया है कि कैसे समान रूप से ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ के पक्षधर एवं ‘प्रगतिशील’ तथा ‘धर्मनिरपेक्ष’ कही जाने वाली राजनैतिक विचारधाराएं वर्ग आधारित, स्तरीकृत समाज व्यवस्था, सांप्रदायिक एवं स्त्री विरोधी मूल्यों को पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से प्रेषित करती हैं|"

Bachhe ka laalan-palan evam shiksha : Ek aloktantrik pravarti ka vikas

"बच्चों में सीखने की जटिल प्रक्रिया स्व-अनुभवों, साथियों से वार्तालाप, खेलकूद आदि के माध्यम से सतत चलती रहती है| बच्चों के माता-पिता, शिक्षक अथवा अन्य वयस्कों के स्नेहिल व्यवहार तथा अभिव्यक्ति के अवसर प्रदान करने से यह व्यवस्थित रूप लेने लगती है जो बच्चों में आत्मविश्वास, अवलोकन तथा संप्रेषणीयता का विकास करती है| यदि बच्चों को अभिव्यक्ति के समुचित अवसर नहीं मिलते हैं तो उनके व्यक्तित्व पर इसका प्रतिगामी प्रभाव पड़ता है|
बच्चों के लालन-पालन एवं स्कूली शिक्षा की प्रक्रिया में आरंभ से ही बच्चों के मौलिक चिन्तन को हतोत्साहित किया जाता है| बच्चों के लिए अभिव्यक्ति के समुचित अवसर लोकतांत्रिक समाज की भी आवश्यकता किया जाता है| बच्चों के लिए अभिव्यक्ति के समुचित अवसर लोकतांत्रिक समाज की भी आवश्यकता है| परिवार, समाज एवं शाला के माध्यम से बच्चे के व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया का निरूपण प्रस्तुत लेख में किया गया है|"